‘समझदार’ एक मै ही हूँ
और बाक़ी सब ‘नादान’
बस इसी भ्रम मे घूम रहा है
आजकल हर ‘इंसान’ !!
‘समझदार’ एक मै ही हूँ
और बाक़ी सब ‘नादान’
बस इसी भ्रम मे घूम रहा है
आजकल हर ‘इंसान’ !!
“जीत” किसके लिए ‘हार’ किसके लिए
‘ज़िंदगी भर’ ये ‘तकरार’ किसके लिए,
जो भी ‘आया’ है वो ‘जायेगा’ एक दिन
फिर ये इतना “अहंकार” किसके लिए !
एक किताबघर में पड़ी गीता और कुरान
आपस में कभी नहीं लड़ते
और जो उनके लिए लड़ते हैं
वो कभी उन दोनों को नहीं पढ़ते…!!!
एक पहचान हज़ारो दोस्त बना देती हैं,
एक मुस्कान हज़ारो गम भुला देती हैं
ज़िंदगी के सफ़र मे संभाल कर चलना
एक ग़लती हज़ारो सपने जला देती है |
कोहनी पर टिके हुए लोग,
टुकड़ो पर बिके हुए लोग।
करते हैं बरगद की बातें;
ये गमले में उगे हुए लोग!!
झुठे हैं वो जो कहते हैं कि
“हम सब मिट्टी से बने हैं।”
मैं कई अपनों से वाकिफ हूं,
जो पत्थर के बने हैं!!
समय बहा कर ले जाता है,
नाम और निशान……
कोई “हम” में रह जाता है
और कोई “अहम् “में…..?
किस से सीखू मैं खुदा की बंदगी,
सब लोग खुदा के बँटवारे किए बैठे है,
जो लोग कहते है खुदा कण कण में है,
वही मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे लिए बैठे हैं !