Mir Taqi Mir Ghazal Shayari Hindi – Na Socha Na Samjha Na Sikha Na Jana

न सोचा न समझा न सीखा न जाना
मुझे आ गया ख़ुदबख़ुद दिल लगाना

ज़रा देख कर अपना जल्वा दिखाना
सिमट कर यहीं आ न जाये ज़माना

ज़ुबाँ पर लगी हैं वफ़ाओं कि मुहरें
ख़मोशी मेरी कह रही है फ़साना

गुलों तक लगायी तो आसाँ है लेकिन
है दुशवार काँटों से दामन बचाना

करो लाख तुम मातम-ए-नौजवानी
प ‘मीर’ अब नहीं आयेगा वोह ज़माना

-Mir Taqi Mir




Mir Taqi Mir Ghazal Shayari Hindi – Zakhm Jhele Daag Bhi Khaye Bahut

ज़ख्म झेले, दाग़ भी खाए बहुत
दिल लगा कर, हम तो पछताए बहुत

जब न तब जागह से तुम जाया किए
हम तो अपनी ओर से आए बहुत

देर से सू-ए-हरम आया न टुक
हम मिज़ाज अपना इधर लाए बहुत

फूल, गुल, शम्स-ओ-क़मर सारे ही थे
पर हमें उन में तुम्हीं भाए बहुत

गर बुका इस शोर से शब को है तो
रोवेंगे सोने को हमसाये बहुत

वो जो निकला सुब्ह जैसे आफ़ताब
रश्क से गुल फूल मुरझाए बहुत

मीर से पूछा जो मैं, आशिक़ हो तुम
हो के कुछ चुपके से शरमाये बहुत

-मीर तक़ी मीर

Mir Taqi Mir Ghazal Shayari Hindi – Jo Tu Hi Sanam Se Bezar Hoga

जो तू ही सनम हम से बेज़ार होगा
तो जीना हमें अपना दुशवार होगा

ग़म-ए-हिज्र रखेगा बेताब दिल को
हमें कुढ़ते-कुढ़ते कुछ आज़ार होगा

जो अफ़्रात-ए-उल्फ़त है ऐसा तो आशिक़
कोई दिन में बरसों का बिमार होगा

उचटती मुलाक़ात कब तक रहेगी
कभू तो तह-ए-दिल से भी यार होगा

तुझे देख कर लग गया दिल न जाना
के इस संगदिल से हमें प्यार होगा

-Mir Taqi Mir




Mir Taqi Mir Ghazal Shayari Hindi – Dikhayi Diye Yu Ki Bekhud Kiya

फ़कीरान: आए, सदा कर चले
मियाँ ख़ुश रहो, हम दुआ कर चले

जो तुझ बिन, न जीने को कहते थे हम
सो इस ‘अहद को अब वफ़ा कर चले

शिफ़ा अपनी तक़दीर ही में न थी
कि मक़्दूर तक तो दवा कर चले

पड़े ऐसे अस्बाब पायान-ए-कार
कि नाचार यूँ जी जलाकर चले

वो क्या चीज़ है आह जिसके लिए
हर इक चीज़ से दिल उठाकर चले

कोई ना-उमीदान: करते निगाह
सो तुम हम से मुँह भी छुपाकर चले

बहुत आरज़ू थी गली की तिरी
सो याँ से लहू में नहा कर चले

दिखाई दिए यूँ, कि बेख़ुद किया
हमें आप से भी जुदा कर चले

ज़बीं सजद: करते ही करते गई
हक़-ए-बंदगी हम अदा कर चले

परस्तिश की याँ तक, कि अय बुत तुझे
नज़र में सभू की ख़ुदा कर चले

झड़े फूल जिस रंग गुलबुन से यूँ
चमन में जहाँ के हम आकर चले

न देखा ग़म-ए-दोस्ताँ शुक्र है
हमीं दाग़ अपना दिखाकर चले

गई उम्र दर-बंद-ए-फ़िक्र-ए-ग़ज़ल
सो इस फ़न को ऐसा बड़ा कर चले

कहें क्या जो पूछे कोई हमसे, मीर
जहाँ में तुम आए थे, क्या कर चले

-मीर तक़ी मीर

Mir Taqi Mir Ghazal Shayari Hindi – Kya Kahun Tum Se Main Ke Kya Hai Ishq

क्या कहूँ तुम से मैं के क्या है इश्क़
जान का रोग है, बला है इश्क़

इश्क़ ही इश्क़ है जहाँ देखो
सारे आलम में भर रहा है इश्क़

इश्क़ माशूक़ इश्क़ आशिक़ है
यानि अपना ही मुब्तला है इश्क़

इश्क़ है तर्ज़-ओ-तौर इश्क़ के तईं
कहीं बंदा कहीं ख़ुदा है इश्क़

कौन मक़्सद को इश्क़ बिन पहुँचा
आरज़ू इश्क़ वा मुद्दा है इश्क़

कोई ख़्वाहाँ नहीं मोहब्बत का
तू कहे जिन्स-ए-नारवा है इश्क़

मीर जी ज़र्द होते जाते हैं
क्या कहीं तुम ने भी किया है इश्क़?

-Mir Taqi Mir




Mir Taqi Mir Ghazal Shayari Hindi – Jin Jin Ko Tha Yeh Ishq Ka Aazar

जिन जिन को था यह `इश्क़ का आज़ार, मर गए
अक्सर हमारे साथ के बीमार मर गए

होता नहीं है उस लब-ए-नौ-ख़त पे कोई सब्ज़
ईसा-ओ-ख़िज़्र क्या सभी यक बार मर गए

यूँ कानों कान गुल ने न जाना चमन में, आह
सर को पटक के हम, पस-ए-दीवार मर गए

सद कारवाँ वफ़ा है, कोई पूछता नहीं
गोया मता-ए-दिल के ख़रीदार मर गए

मजनूँ न दश्त में है, न फ़रहाद कोह में
था जिन से लुत्फ़-ए-ज़िन्दगी, वे यार मर गए

गर ज़िन्दगी यही है, जो करते हैं हम असीर
तो वे ही जी गए, जो गिरफ़्तार मर गए

अफ़सोस वे शहीद कि जो क़त्ल-गाह में
लगते ही उस के हाथ की तलवार मर गए

तुझ से दो-चार होने की हसरत के मुब्तिला
जब जी हुआ वबाल तो नाचार मर गए

घबरा न मीर इश्क़ में उस सहल-ए-ज़ीस्त पर
जब बस चला न कुछ तो मिरे यार मर गए

-मीर तक़ी मीर

Mir Taqi Mir Ghazal Shayari Hindi – Bekhudi Kahan Le Gai Humko

बेखुदी कहाँ ले गई हमको,
देर से इंतज़ार है अपना

रोते फिरते हैं सारी सारी रात,
अब यही रोज़गार है अपना

दे के दिल हम जो गए मजबूर,
इस मे क्या इख्तियार है अपना

कुछ नही हम मिसाल-ऐ- उनका लेक
शहर शहर इश्तिहार है अपना

जिसको तुम आसमान कहते हो,
सो दिलो का गुबार है अपना

Mir taqi mir




Mir Taqi Mir Ghazal Shayari Hindi – Bekhudi Le Gayi Kahan Hum Ko

बेखुदी ले गयी कहाँ हम को
देर से इंतज़ार है अपना

रोते फिरते हैं सारी-सारी रात
अब यही रोज़गार है अपना

दे के दिल हम जो हो गए मजबूर
इस में क्या इख्तियार है अपना

कुछ नही हम मिसाले-अनका लेक
शहर-शहर इश्तेहार है अपना

जिस को तुम आसमान कहते हो
सो दिलों का गुबार है अपना

-Mir Taqi Mir




Mir Taqi Mir Ghazal Shayari Hindi – Hamare Aage Tera Jab Kisi Ne Naam Liya

हमारे आगे तेरा जब किसी ने नाम लिया
दिल-ए-सितम-ज़दा को हमने थाम-थाम लिया

ख़राब रहते थे मस्जिद के आगे मयख़ाने
निगाह-ए-मस्त ने साक़ी की इंतक़ाम लिया

वो कज-रविश न मिला मुझसे रास्ते में कभू
न सीधी तरहा से उसने मेरा सलाम लिया

मेरे सलीक़े से मेरी निभी मोहब्बत में
तमाम उम्र मैं नाकामियों से काम लिया

अगरचे गोशा-गुज़ीं हूँ मैं शाइरों में ‘मीर’
प’ मेरे शोर ने रू-ए-ज़मीं तमाम किया

-Mir Taqi Mir




Mir Taqi Mir Ghazal Shayari Hindi – Aaye Hai Mir Muh Ko Banaye

आए हैं मीर मुँह को बनाए जफ़ा से आज
शायद बिगड़ गयी है उस बेवफा से आज

जीने में इख्तियार नहीं वरना हमनशीं
हम चाहते हैं मौत तो अपने खुदा से आज

साक़ी टुक एक मौसम-ए-गुल की तरफ़ भी देख
टपका पड़े है रंग चमन में हवा से आज

था जी में उससे मिलिए तो क्या क्या न कहिये ‘मीर’
पर कुछ कहा गया न ग़म-ए-दिल हया से आज

-Mir Taqi Mir