आंसू को कभी ओस का कतरा ना समझना..
ऐसा तुम्हे चाहत का समंदर ना मिलेगा.
फ़िर याद बहुत आयेगी, वो ज़ुल्फ़ों की घनी शाम..
जब धूप मे साया कोई सर पे ना मिलेगा.
कभी उसने भी हमें चाहत का पैगाम लिखा था,
सब कुछ उसने अपना हमारे नाम लिखा था,
सुना है आज उनको हमारे जिक्र से भी नफ़रत है,
जिसने कभी अपने दिल पर हमारा नाम लिखा था।
खामोशी से बिखरना आ गया है,
हमें अब खुद उजड़ना आ गया है,
किसी को बेवफा कहते नहीं हम,
हमें भी अब बदलना आ गया है,
किसी की याद में रोते नहीं हम,
हमें चुपचाप जलना आ गया है,
गुलाबों को तुम अपने पास ही रखो,
हमें कांटों पे चलना आ गया है|