Zakir Khan Shayari – Yun To Bhule Hume Hai Log Kai Pehle Bhi
यूं तो भूले है हमे लोग कई पहले भी बहुत से
पर तुम जितना उनमे से कभी कोई याद नही आया
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*
कितना तन्हा है ये नया शहर
देखो, तुम्हारी यादे तक नही आती
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*
मेरे घर से दफ्तर के रास्ते मे तुम्हारे नाम की इक दुकान पड़ती है
विडबना देखो वहाँ दवाईयाँ मिला करती है
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*

Zakir Khan Shayari – Bewajah Bewafao Ko Yaad Kiya Hai
बेवजह बेवफाओ को याद किया है
गलत लोगो पे बहोत वक्त बर्बाद किया है
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*
मैं शून्य पे सवार हूँ,बेअदब सा मैं खुमार हूँ
अब मुश्किलों से क्या डरूं,मैं खुद कहर हज़ार हूँ
मैं शून्य पे सवार हूँ,मैं शून्य पे सवार हूँ
उंच-नीच से परे,मजाल आँख में भरे
मैं लड़ रहा हूँ रात से,मशाल हाथ में लिए
न सूर्य मेरे साथ है,तो क्या नयी ये बात है
वो शाम होता ढल गया,वो रात से था डर गया
मैं जुगनुओं का यार हूँ,मैं शून्य पे सवार हूँ
मैं शून्य पे सवार हूँ,भावनाएं मर चुकीं
संवेदनाएं खत्म हैं,अब दर्द से क्या डरूं
ज़िन्दगी ही ज़ख्म है,मैं बीच रह की मात हूँ
बेजान-स्याह रात हूँ,मैं काली का श्रृंगार हूँ
मैं शून्य पे सवार हूँ,मैं शून्य पे सवार हूँ
हूँ राम का सा तेज मैं,लंकापति सा ज्ञान हूँ
किस की करूं आराधना,सब से जो मैं महान हूँ
ब्रह्माण्ड का मैं सार हूँ,मैं जल-प्रवाह निहार हूँ
मैं शून्य पे सवार हूँ,मैं शून्य पे सवार हूँ
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*
वो तितली की तरह आई और जिंदगी को बाग कर गयी
मेरे जितने नापाक थे इरादे, उन्हे भी पाक कर गयी
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*
बहुत मासूम लड़्की है,इश्क की बात नही समझती
जाने किस दिन मे खोई रहती है,मेरी रात नही समझती
और..हाँ..हुम्म..सही बात है..तो कहती है
अल्फाज़ समझत लेती है,जज्बात नही समझती
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*
हर एक नोट बुक के पीछे, कुछ ना कुछ खास लिखा है
कुछ इस तरह से मैने तेरे म्रेरे इश्क का इतिहास लिखा है
तुम दुनिया मे चाहे जहाँ भी रहो, अपनी डायरी में मैने तुम्हे पास लिखा है
हर एक नोट बुक के पीछे, कुछ ना कुछ खास लिखा है
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*
Zakir Khan Shayari – Batane Ki Baat To Nahi Par Batane Dogi Kya
बताने की बात तो नही, पर बताने दोगी क्या?
इश्क बेपनाह है तुम से, इक बार जताने दोगी क्या?
तुम नदी,तुम पहाड़,तुम तितली, तुम आसमान हो मेरा
इक डिब्बिया मे सिंदूर रखा है, हमारे पास तुम लगाने दोगी क्या?
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*
तेरी फुर्सत के इंतजार मे रहता हुँ,मै परदेश मे रह कर भी प्यार मे रहता हुँ
बस एक तेरी मर्जी से ही बदलेगी किस्मत मेरी,वरना जीत कर भी हार मै मे रहता हुँ
तेरी फुर्सत के इंतजार मे रहता हुँ,मै परदेश मे रह कर भी प्यार मे रहता हुँ
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*
तेरे मिलने के वादे पे यकीन है मुझे,मगर तू रास्ते मे रुकता बोहोत है
जैसे अंदुरुनी कोई घाव दिखता भले ना हो मगर यहाँ दुखता बोहोत है
मुझे गुड नाइट कहने के बाद भी आँन लाइन रहना तेरा
समझा लेता खुद को मगर इधर चुभता बोहोत है
तेरे मिलने के वादे पे यकीन है मुझे,मगर तू रास्ते मे रुकता बोहोत है
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*
बहुत हुआ रुहानी इश्क,अब के तो मिलना है तुमसे
गज़ले और कविताये नही पढनी है छूना है तुमको
मुझे मेरी हथेलियाँ तुम्हारे हाथो मे चाहिये
सीने से लगाना है तुमको,बांहो मे भर लेना है
माथा चूम लेना है तुम्हारा
और फोन पर तो बिल्कुल बात नही करनी
मुझे तुम्हारी पलको को बंद होते और खुलते देखना है
खुशबू महसूस नही करना है,हाथ थामना है तुम्हारा
जुल्फो से खेलना है,कुछ काम बताना है तुमको
और तुम्हारे उठकर जाने से पहले,
कलाई से पकड़कर दोबारा बैठा लेना है
बहुत हुआ रुहानी इश्क,अब के तो मिलना है तुमसे
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*
मुझे दोज़ख से उठा कर,जन्नत के साथ रख दिया
उसने शर्ट पर चूमा फिर गाल पर हाथ रख दिया
हमे भी नुमाइश की तलब थी बहोत
उसने मेरा हाथ थामा और फिर हाथ पे हाथ रख दिया
मुझे दोज़ख से उठा कर,जन्नत के साथ रख दिया
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*
Zakir Khan Shayari Usse Acha Nahi Lagta
ये खत है उस गुलदान के नाम जिसमे रखा फूल कभी हमारा था
वो जो अब तुम उसके मुखतार हो तो सुन लो उसे अच्छा नही लगता
मेरी जान के हकदार हो तो सुन लो उसे अच्छा नही लगता
के वो जो जुल्फ बिखेरे तो बिखरी ना समझना,
ग़र जो माथे पे आ जाये तो बेफिकरी ना समझना
दरअसल उसे ऐसे ही पसंद है,
उसकी आजादी उसकी खुली जुल्फो मे बंद है
जानते हो वो अगर हजार बार जुल्फे ना संवारे तो उसका गुजारा नही होता
वैसे दिल बहुत साफ है उसका,इन हरकतो मे कोई इशारा नही होता
खुदा के वास्ते उसे कभी टोक ना देना
उसकी आजादी से उसे तुम रोक ना देना
क्युकि अब मै नही तुम उसके दिलदार हो तो सुन लो
उसे अच्छा नही लगता
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*
कभी कभी सोचता हुँ के वो सबकुछ बता दू तुमको
जो इस दुनिया के बारे मे समझ लिया है मैने
फिर सोचता हुँ के क्या करोगी जान कर
हम दोनो के हिस्से का तो समझ लिया है ना मैने
तुम तो ये बताओ के ये सूट कहाँ से लिया तुमने
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*
Zakir Khan Shayari – Wo Rishta Mere Liye 2 Ke Pahade Jaisa Hai
वो रिश्ता मेरे लिए 2 के पहाड़े जैसा,
पर उसे लिए 19 का टेबल हो गया है,
मुझसे भूला नहीं जाता, उसे याद दिलाना पड़ता है.
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*
ख्वावो की दीवार भरे बाजार मे टूटी देखी है
मैने अंजान बुलेट के बगल मे तेरी स्कूटी देखी है
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*
मेरे कुछ सवाल है जो सिर्फ कयामत रोज पूछूंगा तुमसे
क्योकि उसके पहले तुम्हारी और मेरी बात हो सके
इस लायक नही हो तुम
*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*
छह हेयर बेंड,चार अलग अलग तरह की बालो वाली क्लिप
वो जो उस दिन जो सैंडिल टूटी थी तुम्हारी उसकी एक स्ट्रेप
और वो किताब जिसके पन्ने मोड़ कर दिये थे तुमने
संभाल रखा है सब मैने,जब आओगी तब ले जाना
वैसे छोटे बड़े मिलाकर कुल तेईस कपड़े पड़े है तुम्हारे
जिसमे कुछ मे तो तुम बला की हसीन लगी
जैसे वो ग्रीन वाला जंप सूट,बेबी पिंक कलर का क्रोप टोप
वो ब्लू वाली ड्रेस,वो ब्लैक वाली साड़ी
मै बस ये कह रहा था के खरीद लेना वैसा सा ही कुछ कही से
क्योकि लौटाने का मन नही है मेरा
नही मजाक कर रहा हुँ,संभाल रखा है मैने सब कुछ
जब आओगी तो ले जाना
वैसे कुछ हिसाब भी देना था तुमको
तुम्हारी और मेरी तस्वीर वाला काँफी मग
उसका हेंडिल मुझसे टूट गया है
चेक वाली शर्ट दो हफ्ते से मिल नही रही है
ब्लू वाली शर्ट धोबी ने जला दी
घड़ी खोई नही है,बंद हो गयी थी इसलिये उतार कर रख दी है
चशमा और ईयर फोन जल्दबाजी मे एयर्पोर्ट पर छूट गये
बोहोत ढूढे पर नही मिले,पर वो गुलाब के फूलो का गुलदस्ता
वो तुम्हारी कार पार्किंग की पर्चीया
वो टिशू पेपर जिस पर तुमने पहली बार अपना नंबर लिख कर दिया था
तुम्हारे लिपस्टिक के निशान वाला पेपर कप
तुम्हारे मोर पंख वाले झुमके और मै
ये सब कुछ जो शायद गलती से छोड़ गयी थी तुम
या शायद जान बुझकर छोड़ा था तुमने
पर मैने अपनी पूरी ईमानदारी के साथ
संभाल रखा है सब कुछ
जब आओगी तब ले जाना
Written By Zakir Khan